Saturday, November 21, 2009


सकलभुवनसृष्टि: कल्पिताशेषपुष्टि-
र्निखिलनिगमदृष्टि: संपदां व्यर्थदृष्टि:
अवगुणपरिमार्ष्टि-स्तत्पदार्थैकदृष्टि-
र्भवगुणपरमेष्टि-मोक्षमार्गैकदृष्टि:

(जो सम्पूर्ण भूलोक के रचयिता एवं पालनकर्ता हैं, सम्पूर्ण वेद-पुराण जिनकी दृष्टि में हैं, सम्पूर्ण ऎश्वर्य को जो तुच्छ समझते हैं, जो सभी दुर्गुणों को दूर करने वाले हैं, जो जीव-ब्रह्म के तत्व को जानने वाले हैं, जो इस भवसागर से छुटकारा दिलाने वाले एवं मोक्ष मार्ग को प्रशस्त करने वाले हैं, वे गुरुदेव मेरे हॄदय में निवास करें) -श्री गुरुगीता